स्वास्थ्य-चिकित्सा >> चमत्कारी जड़ी बूटियाँ चमत्कारी जड़ी बूटियाँमहर्षि अभय कात्यायन
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जो पौधे औषधीयोपयोगी हैं और अपने चमत्कारिक प्रभाव से मानवों एवं पशुओं के कष्ट दूर करते हैं, उन्हें ‘जड़ी-बूटी’ कहा जाता है। इस पुस्तक में हमारे दैनिक जीवन में उपयोग में आने वाले पौधों का पूर्ण वर्णन उनके परिचय एवं चमत्कारी गुणों के साथ किया जा रहा है...
Chamatkari Jadhi Bootiyan-A Hindi Bookby Mahrishi Abhay Katyayan
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
इस प्रकार का स्वास्थ्य युक्ताहार विहार के साथ जड़ी-बूटियों के मंत्र सहित, श्रद्धायुक्त उपयोग द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। जड़ी-बूटियाँ अर्थ, धर्म, काम एवं मोक्ष प्रदायक आरोग्य एवं दीर्घायु की प्राप्ति में योगदान करती हैं। इतनी ही नहीं ये जड़ी-बूटियाँ अहर्विशपरोपकार के लिये सन्नद्ध रहती हुई मानव को परोपकारी एवं उदार बनने की प्रेरणा देती हैं।
प्राक्कथन
वनस्पतियों का मानव शरीर को निरोग करने हेतु प्रयोग सर्वथा हानि रहित तथा सौम्य प्रभाव वाला होता है। इस पुस्तक में चुनी हुई लगभग 32 जड़ी-बूटियों के गुण धर्म उपयोग का सांगोपांग विवेचन है। पुस्तक की भाषा को यथा सम्भव सरल एवं बोधगम्य रखने का प्रयास किया गया है। यह पुस्तक भाषा-विज्ञान में रुचि रखने वाले पाठकों को भी अवश्य ही रुचिकर प्रतीत होगी; क्योंकि इसमें अनेक शब्दों की सही व्युत्पत्ति को खोजकर सामने लाया गया है। विश्व की सभी भाषाओं की जननी संस्कृत है।
पुस्तक के लेखन में प्राचीन भारतीय मनीषियों द्वारा रचित ग्रन्थों के अतिरिक्त अनेक अर्वाचीन भारतीय एवं विदेशी मनीषियों द्वारा प्रणीत एवं संपादित ग्रन्थों से जो अमूल्य सहयोग प्राप्त हु्आ है सो उन सबके प्रति लेखक आभार प्रकट करता है।
पुस्तक के शीघ्र एवं शुद्ध प्रकाशन हेतु श्री राजीव अग्रवाल का भी आभारी हूँ। पुस्तक की पाण्डुलिपि के तैयार करने में मेरे मंझले पुत्र चि. विकासमणि शास्त्री ने जो परिश्रम किया है, उसके लिए उन्हें आशीर्वाद प्रदान करता हूँ।
अन्त में, सुधी पाठकों से अनुरोध है कि वे पुस्तक के पठनोपरान्त अपने विचारों से लेखक को अवगत कराने की कृपा करें।
महर्षि अभय कात्यायन
विषय प्रवेश
मंगलाचरण
करोमि राष्ट्रभाषायां ‘जटाभूभूति’ ग्रंथकम्।।
‘जड़ी-बूटी’ शब्द में दो शब्द हैं—जड़ी का अर्थ (Root) वाली वस्तु। पौधों में जड़ें होती हैं, जड़ को मूल भी कहते हैं। बिना मूल के पौधे का अस्तित्व नहीं होता। ‘बूटी’ शब्द संस्कृति के ‘भू-भूति’ (भूभूति) शब्द का अपभ्रंश है। पौधों को बूटा भी इसीलिए कहा जाता है कि क्योंकि ये पृथ्वी (भू) के तनय यानी पुत्र हैं या पृथ्वी से जिसकी उत्पत्ति हो वह भू-भूति। यह ऐसी भूति है जिसे पृथ्वी अपने पृष्ठ (सतह) पर उत्पन्न करती है। अँग्रेजी में प्रचलित शब्द बॉटनी (Botany) संस्कृति ‘भूतनयी’ शब्द का अपभ्रंश है। संस्कृत से यह शब्द ग्रीक भाषा में अपभ्रष्ट होकर (Botanikos) बाटनिक्स बना। संस्कृत का (‘‘भू-तनयिक’) जो कि फ्रेंच भाषा में Botanique (बॉटनिक) नाम से रूपान्तरित हो गया फिर ईसा की 17वीं शताब्दी में यही अँग्रेजी में बॉटनिक (Botanic) हो गया। किसी समय संस्कृत ही विश्व की एक मात्र भाषा थी जिसकी व्यवहार सम्पूर्ण जगत करता था। संसार की सभी भाषाएँ किसी न किसी रूप में संस्कृत से ही विकसित हुई हैं। उच्चारण भेद से आज भाषाओं में अत्यधिक पार्थत्य दिखायी देने लगा है। भूति का अर्थ उत्पादन, सम्पत्ति तथा ऐश्वर्य होता है।
भारतवर्ष में एक वर्ष के भीतर छः ऋतुएँ तथा तीन मौसम होते हैं। भूमि भी अनेक प्रकार की है। यह एक ईश्वरीय वरदान है जिसके कारण हमारे देश में प्रायः सभी प्रजातियों की वनस्पतियाँ उगती हैं। परन्तु इसे दुर्भाग्य के अतिरिक्त और क्या कह सकते हैं कि प्रदूषण तथा जंगलों की अन्धाधुन्ध कटाई के कारण आज पेड़-पौधे लुप्त होते चले जा रहे हैं। बढ़ती हुई जनसंख्या भी इसका एक प्रबव कारण है। यदि समय रहते हुए हमने इस पर ध्यान न दिया तब इसके भयावह परिणामों को रोका न जा सकेगा। इस पुस्तक में हमारे दैनिक जीवन में उपयोग में आने वाले पौधों के अतिरिक्त ऐसे पौधे जो सुलभ हैं, हमारे आस- पास के परिवेश में उपलब्ध हैं और जिनमें से अनेक पौधों से जनसामान्य भली-भाँति परिचित भी है। उनके परिचय एवं चमत्कारी गुणों का वर्णन किया जा रहा है इनके गुणों का उपयोग घरेलू चिकित्सा, पशु चिकित्सा, तन्त्र प्रयोग, वास्तु, ज्योतिष, होम्योपैथी आदि क्षेत्रों में सफलतापूर्वक किया जा सकता है। जनसामान्य इनका उपयोग सावधानीपूर्वक करके अपना एवं अपने परिवार का महान हित साधन कर सकता है।
वृक्षों के प्रति हमारा कर्तव्य
विशालर्षभ तेजस्विन् देवप्रस्थ वरूथप।।1।।
पश्यैतान् महाभागान् परार्थैकान्त जीवितान्।
वात वर्षातपहिमान् सहन्तो वारयन्ति नः।।2।।
अहो एषां वरं जन्म सर्व प्राण्युपजीविनम्।
सुजनस्यैव येषां वै विमुखा यान्ति नार्थिनः।।3।।
वृक्ष हमें क्या-क्या देते हैं उनसे हमें क्या लाभ हैं। ? यह सहब विस्तारपूर्वर समझाते हुए भगवान अपने श्रीमुख से कहते हैं।
गंध, निर्यास भस्मास्थि तोक्मैः कामान् वितन्वते।।1।।
एतावज्जन्मसाफल्यं देहिनामिह देहिषु।
प्राणैरर्थ धिया वाचा श्रेय एवाचरेत् सदा।।2।।
कष्चिमन्न वाय्वादिरुपप्लवो वा, श्रमच्छिदं आश्रम पादपानाम्।।’’
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- विषय-प्रवेश
- वृक्षों के प्रति हमारा कर्तव्य
- वृक्षों के विभिन्न नाम
- जड़ी बूटियों का वर्गीकरण
- महत्वपूर्ण शब्दों के अर्थ
- आवश्यक पारिभाषिक शब्दावली
- ऊँटकटारा
- अंकोल (अकोला)
- रोहिड़ा
- छोंकर
- बेर या बदरी वृक्ष
- कसौंदी
- अतीस
- कनेर (सफेद तथा लाल)
- कुश
- करील या करीर
- अंजीर
- शंखपुष्पी
- बुवई या वन तुलसी
- चकवड़ या पंवाड़
- ब्राह्मी
- मण्डूकपर्णी
- तुलसी
- बथुआ
- पुनर्नवा (सांठ)
- धतूरा
- इन्द्रायण
- सुपारी
- भृंगराज
- हरड़
- बहेड़ा
- भांग
- गुंजा (रक्त और श्वेत)
- कदम्ब
- अपराजिता (कोयल)
- कटेरी (छोटी और बड़ी)
- ईख
- सहयोगी एवं सन्दर्भ ग्रन्थ